ई-टेंडरिंग को लेकर स्वयं एक राय नजर नहीं आ रहे हैं भाजपा और जजपा के नेता : दिग्विजय चौटाला

इंडिया एज न्यूज नेटवर्क
चंडीगढ़ : ई-टेंडरिंग को लेकर लगातार सरपंचों का विरोध झेल रही भाजपा और उनकी सहयोगी जजपा के नेता स्वयं इस मुद्दे पर एक राय नजर नहीं आ रहे। दरअसल ई टेंडरिंग को लेकर काफी लंबे समय से सरपंच आंदोलनरत हैं। उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली लगातार सरपंचों के इस आंदोलन की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ उपमुख्यमंत्री के भाई एवं जजपा के प्रधान महासचिव दिग्विजय चौटाला पहले दिन से सरपंचों के हित में लगातार बयानबाजी जारी रखे हुए हैं।
इस बार फिर दिग्विजय ने दो टूक शब्दों में सरपंचों के हक में बोलते हुए सरकार को एक संदेश दिया है कि ई-टेंडरिंग में जरूरी बदलाव करने में सरकार को कतई देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि प्रजातांत्रिक प्रणाली में जनता द्वारा चुनकर आने वाले प्रतिनिधियों की पावर ज्यादा होनी चाहिए, ना कि अधिकारियों की। क्योंकि हर 5 साल के बाद जनता में जाकर जवाबदेही अधिकारियों की नहीं बल्कि प्रतिनिधियों की होगी।
दिग्विजय चौटाला ने कहा कि मेरी सरकार को यही राय है कि जल्द-से-जल्द इस मामले का सॉल्यूशन करने में ही भलाई है। यह सरपंच अपने हैं और सरपंच अगर नाराज हुए तो इसका खामियाजा सभी को उठाना पड़ेगा। इसलिए उनकी नाराजगी को मोल ना लेते हुए उनसे बात करनी चाहिए। उनकी सहमति के बाद ई टेंडरिंग में जरूरी बदलाव करते हुए इस राशि को दो लाख से बढ़ाया जाना चाहिए।
अधिकारी तो केवल रिटायर्ड ही होंगे, अधिकारी को 5 साल बाद किसी के पास नहीं जाना जबकि लोकतांत्रिक प्रणाली में जनता के प्रतिनिधि को फिर से जनता में जाकर अपनी उपलब्धियां गिरवानी होंगी। ऐसे में एक बात बेहद अचरज भरी है कि इस मुद्दे को लेकर स्वयं जेजेपी के नेताओं की अगर एक राय नहीं है तो फिर फैसला सरपंचों पर क्यों थोपा जा रहा है।जेजेपी के बेहद वरिष्ठ – दूरदर्शी और गेम चेंजर नेता दिग्विजय चौटाला के प्रयोग पार्टी के लिए हर मोड़ पर लाभकारी सिद्ध हुए तो फिर क्यों दिग्विजय की ही बात उनके पार्टी के मंत्री नहीं सुन पा रहे।
उन्होंने दो लाख की राशि को बेहद कम बताते हुए कहा कि कोई भी सरपंच दो लाख से काम नहीं करवा सकता। आज महंगाई के दौर में 2 लाख से तो छोटी सी गली भी नहीं बन सकती। इसलिए इस पर सरकार को विचार करना चाहिए। उन्होंने पॉलीटिकल विल पर बात करते हुए कहा कि ब्यूरोक्रेसी और जनप्रतिनिधि दो अलग-अलग चीजें हैं। सरपंच एक चुना हुआ नुमाइंदा है और उसे फिर दोबारा जनता में जाना होता है। इसलिए उसके हाथ मजबूत होने की आवश्यकता है ना कि ब्यूरोक्रेसी की।
(जी.एन.एस)